अस्सिटेंट प्रोफेसर के खिलाफ शादी का झांसा देकर दु्ष्कर्म की FIR सुप्रीम कोर्ट ने की रद्द, जांच में सामने आया महिला 'चालाकी' से काम ले रही थी

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि यह प्राथमिकी झूठे और दुर्भावनापूर्ण आरोपों का समूह है, जिसमें तथ्य नहीं हैं। अदालत का मानना है कि अगर इस मामले में मुकदमा चलने दिया जाता, तो यह न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग होता।;

By :  DeskNoida
Update: 2025-05-29 17:01 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उस व्यक्ति के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया, जिस पर एक महिला ने शादी का झांसा देकर दुष्कर्म करने और एससी/एसटी एक्ट के तहत आरोप लगाए थे। अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता के आरोपों को साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई ठोस सामग्री मौजूद नहीं है।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि यह प्राथमिकी झूठे और दुर्भावनापूर्ण आरोपों का समूह है, जिसमें तथ्य नहीं हैं। अदालत का मानना है कि अगर इस मामले में मुकदमा चलने दिया जाता, तो यह न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग होता।

अदालत ने यह भी कहा कि महिला के आरोपों में कई विरोधाभास हैं। पीड़िता, जो 30 साल की शिक्षित महिला है, ने 2021 की एफआईआर में केवल एक बार संबंध बनाने की बात कही थी, लेकिन 2022 की एफआईआर में 4-5 बार ऐसी घटनाओं का जिक्र है, जो 2021 से पहले की बताई गई हैं। अदालत ने कहा कि यह असंभव लगता है कि कोई व्यक्ति इतनी घटनाओं को भूल जाए।

अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोपी ने तेलंगाना हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने एफआईआर रद्द करने की याचिका खारिज कर दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी बताया कि महिला ने पहले भी उस्मानिया यूनिवर्सिटी के एक असिस्टेंट प्रोफेसर के खिलाफ इसी तरह की शिकायत दर्ज कराई थी। मोबाइल चैट्स देखने के बाद अदालत ने पाया कि महिला ने खुद स्वीकार किया है कि वह चालाकी से काम ले रही थी और उसका उद्देश्य अमेरिका में रहने वाले किसी व्यक्ति से संबंध बनाना था।

महिला ने अपनी बातचीत में यह भी कहा था कि उसे किसी को फंसाना मुश्किल नहीं है और वह अगली बार बेहतर निवेश करना चाहती है। उसने यह भी कहा कि वह लोगों को इतना परेशान कर देती है कि वे खुद ही उसे छोड़ दें, ताकि वह नए व्यक्ति के साथ शुरू कर सके। उसने यह भी लिखा कि वह आरोपी का इस्तेमाल कर रही थी।

इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी का डर जाना और शादी से पीछे हटना स्वाभाविक था, जब उसे महिला के व्यवहार के बारे में पता चला। अदालत ने माना कि अगर आरोपी ने शादी के वादे से पीछे हट भी लिया, तो भी यह नहीं कहा जा सकता कि उसने झूठा वादा करके संबंध बनाए थे या महिला के अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय से होने की वजह से कोई अपराध किया गया।

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