दिल्ली हाईकोर्ट ने उमर खालिद और शरजील इमाम की जमानत याचिका खारिज की, 2020 दंगा साजिश केस में बड़ा फैसला

जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की बेंच ने कहा, “सभी अपीलें खारिज की जाती हैं।” कोर्ट ने यह आदेश 9 जुलाई को फैसला सुरक्षित रखने के बाद सुनाया। विस्तृत आदेश बाद में जारी होगा।;

By :  DeskNoida
Update: 2025-09-02 21:30 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को उमर खालिद, शरजील इमाम और सात अन्य आरोपियों की जमानत याचिकाएं खारिज कर दीं। ये सभी फरवरी 2020 दंगों की कथित साजिश से जुड़े यूएपीए (UAPA) मामले में जेल में बंद हैं।

जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की बेंच ने कहा, “सभी अपीलें खारिज की जाती हैं।” कोर्ट ने यह आदेश 9 जुलाई को फैसला सुरक्षित रखने के बाद सुनाया। विस्तृत आदेश बाद में जारी होगा।

आरोप और केस की पृष्ठभूमि

इन सभी पर आरोप है कि उन्होंने फरवरी 2020 में हुए दंगों की साजिश रची थी।

दिल्ली दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी और 700 से अधिक घायल हुए थे।

खालिद और इमाम सहित आरोपियों पर UAPA और आईपीसी की धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है।

आरोप है कि यह दंगे अचानक नहीं बल्कि योजनाबद्ध तरीके से कराए गए थे।

अभियोजन पक्ष का पक्ष

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा— “यह मामला भारत की छवि को वैश्विक स्तर पर बदनाम करने की साजिश है। केवल लंबे समय तक जेल में रहने का आधार जमानत के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता। यदि कोई राष्ट्रविरोधी काम करता है, तो उसे तभी तक जेल में रहना चाहिए जब तक वह बरी न हो जाए।”

दिल्ली पुलिस ने भी कहा कि यह मामला “क्लीनिकल और पैथोलॉजिकल साजिश” का है। आरोपियों के भाषणों और संदेशों से समाज में भय और तनाव फैलाया गया।

बचाव पक्ष की दलील

शरजील इमाम के वकील ने कहा कि उनका मुवक्किल

न तो घटनास्थल से जुड़ा था,

न ही सह-आरोपियों से कोई संबंध था।

उन्होंने दलील दी कि इमाम के भाषण और व्हाट्सऐप चैट में कहीं भी हिंसा भड़काने या दंगा कराने की बात नहीं थी।

लंबी कैद और जमानत की कोशिश

इमाम को अगस्त 2020 में गिरफ्तार किया गया था।

उमर खालिद और अन्य भी 2020 से जेल में हैं।

आरोपियों ने ट्रायल कोर्ट के जमानत याचिका खारिज करने के फैसले को चुनौती दी थी।

उनका कहना था कि लंबी कैद और अन्य सह-आरोपियों को जमानत मिलने के आधार पर उन्हें भी राहत मिलनी चाहिए।

कोर्ट का रुख

दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि इस मामले में लगे गंभीर आरोपों को देखते हुए “जमानत नियम और जेल अपवाद” का सिद्धांत लागू नहीं किया जा सकता। साथ ही, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अभियोजन पक्ष ने ट्रायल में देरी नहीं की है, इसलिए ‘स्पीडी ट्रायल’ का अधिकार जमानत का आधार नहीं बन सकता।

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