नाना की प्रॉपर्टी पर नाती-नातिन का जन्मसिद्ध अधिकार नहीं, बॉम्बे हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

यह फैसला विश्वंभर बनाम सॉ. सुनंदा केस की सुनवाई के दौरान दिया गया, जिसमें अदालत ने हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 की सीमाओं को स्पष्ट किया।;

By :  DeskNoida
Update: 2025-10-28 19:30 GMT

बॉम्बे हाई कोर्ट ने पारिवारिक संपत्ति को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि हिंदू परिवार में नाती या नातिन को अपने नाना की संपत्ति पर कोई जन्मसिद्ध अधिकार नहीं होता।

यह फैसला विश्वंभर बनाम सॉ. सुनंदा केस की सुनवाई के दौरान दिया गया, जिसमें अदालत ने हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 की सीमाओं को स्पष्ट किया। अदालत ने कहा कि इस अधिनियम ने संयुक्त परिवार की संपत्ति में बेटियों को सहहिस्सेदार का समान अधिकार तो दिया है, लेकिन यह अधिकार बेटियों के बच्चों तक नहीं बढ़ाया गया है।

क्या है मामला

मामला तब सामने आया जब एक नातिन (वादी) ने अपने नाना की पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी का दावा करते हुए विभाजन की मांग की।

नाना के निधन के बाद उनके पीछे चार बेटे और चार बेटियां थीं, जिनमें से वादी की मां (नाना की बेटी) जीवित थीं।

वादी ने दलील दी कि उसकी मां को तो संपत्ति में समान अधिकार मिला है, इसलिए उसे भी अपने नाना की संपत्ति में हिस्सा मिलना चाहिए।

हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि नातिन या नाती नाना की संयुक्त पारिवारिक संपत्ति में कोई अधिकार नहीं रखते।

कोर्ट ने क्या कहा

अदालत ने वादी का दावा खारिज करते हुए कहा कि 2005 के अधिनियम के तहत सिर्फ बेटों और बेटियों को ही संयुक्त परिवार की संपत्ति में समान अधिकार दिए गए हैं।

बेटी के बच्चों को ऐसा कोई अधिकार कानून में नहीं दिया गया है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि नातिन अपने नाना के पुरुष वंश की प्रत्यक्ष रेखीय वंशज (lineal descendant) नहीं है, इसलिए उसका कोई जन्मसिद्ध अधिकार (birthright) नहीं बनता।

इस प्रकार, नातिन संयुक्त परिवार की संपत्ति के विभाजन के लिए मुकदमा दायर नहीं कर सकती।

क्या है मिताक्षरा कानून

हिंदू मिताक्षरा कानून के अनुसार, संयुक्त वारिस (coparcener) को जन्म के साथ ही पैतृक संपत्ति में अधिकार प्राप्त हो जाता है।

पहले यह अधिकार केवल पिता और उसके पुरुष वंशजों तक सीमित था।

हालांकि, 2005 के संशोधन अधिनियम के तहत बेटियों को भी बराबर का दर्जा दिया गया और उन्हें संपत्ति में हिस्सा मांगने का अधिकार मिला।

इसके बावजूद, यह संशोधन बेटियों के बच्चों तक लागू नहीं होता।

कानून की सीमाएं और परंपरागत व्याख्या

विशेषज्ञों के अनुसार, 2005 का संशोधन अधिनियम कई व्याख्यात्मक चुनौतियों को लेकर आता है।

मुख्य प्रश्न यह है कि क्या बेटी के बच्चों को उनके नाना की संपत्ति में कोई अधिकार मिल सकता है।

पारंपरिक मिताक्षरा लॉ की दृष्टि से, बेटी के बच्चे नाना की पैतृक संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं रखते।

ऐसे मामलों में उन्हें केवल वसीयत (will) के माध्यम से संपत्ति दी जा सकती है।

यह भी तभी संभव होता है जब नाना बिना बेटे या बेटे की संतान के निधन हो जाएं।

इस स्थिति को ‘सहायकों से प्राप्त विरासत’ (Succession by Heirs of Daughter) कहा जाता है, जिसे पैतृक संपत्ति से अलग माना जाता है।

कानूनी विशेषज्ञों की राय

कानूनी जानकारों का मानना है कि यह फैसला हिंदू उत्तराधिकार कानून की सीमाओं को दोहराता है।

यह स्पष्ट करता है कि वंश परंपरा का अधिकार केवल प्रत्यक्ष रेखीय वंशजों तक सीमित है।

इसलिए, बेटी के बच्चों का अपने नाना या नानी की संपत्ति पर कोई स्वतः अधिकार (automatic right) नहीं बनता।

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