समुद्र तट पर जाना हो तो एक बार ओडिशा के कोणार्क सूर्य मंदिर जरूर जाएं...जानें क्यों है खास

By :  Aryan
Update: 2025-09-01 02:30 GMT

ओडिशा के पूर्वी तट पर पुरी से थोड़ी दूरी पर कोणार्क सूर्य मंदिर स्थित है। यह 13वीं शताब्दी का एक अद्भुत मंदिर है जो कि दुनिया के तीर्थयात्रियों एवं इतिहासकारों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह मंदिर सूर्यदेव को समर्पित है। इसमें एक मनमोहक पत्थर का रथ दिखाई है।

मंदिर को बारीकी से देखने पर अद्भुत कलाकृति देखने को मिलेगी

मंदिर को बारीकी से देखने पर आपको लुप्त मीनारें, लुप्त नदियां और ऐसी कलाकृतियां मिलेंगी जो मिटने का नाम नहीं लेती हैं। जिज्ञासु यात्रियों के लिए कोणार्क अपने रहस्यों को उजागर करने वाला मंदिर है।

कोणार्क सूर्य मंदिर विश्व का धरोहर है

पूर्वी गंग वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम द्वारा 13वीं शताब्दी में निर्मित, कोणार्क सूर्य मंदिर की कल्पना सूर्य के दिव्य रथ के रूप में की गई थी। इसके 24 नक्काशीवाले पहिए दिन के घंटों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनमें से प्रत्येक पर ऋतुओं, अनुष्ठानों और दैनिक जीवन के विस्तृत रूपांकन अंकित हैं। ये पहिए सूर्यघड़ी का भी काम करते हैं, जो मंदिर की खगोलीय सटीकता का प्रमाण देते हैं। 1984 में, इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था, जो अपनी कलात्मक उत्कृष्टता, आध्यात्मिक भक्ति और इंजीनियरिंग प्रतिभा के लिए जाना जाता है।

सात पत्थर के घोड़े रथ को आगे खींचते हैं

सात पत्थर के घोड़े रथ को आगे खींचते हैं, जो सप्ताह के सात दिनों और आकाश में सूर्य की ब्रह्मांडीय गति का प्रतीक है। सूर्य की पहली किरणें सीधे देवता पर पड़ती थीं। कोणार्क कलिंग वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना और ओडिशा के सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है।

वास्तुकला और प्रतीक

मंदिर कालींगा वास्तुकला की चरम कृति के रूप में प्रतिष्ठित है। पहिये विशेष रूप से संध्याकाल का समय बताने वाले सुंदरियां हैं। प्रत्येक में आठ पतली किरणें होती हैं, जो एक प्रहर का प्रतिनिधित्व करती हैं, दो पहियों के जोड़े बारह महीनों का संकेत करते हैं। द्वार पर दो बाघ, हाथी और मानव को कुचलते हुए दिखते हैं जो कि दिव्यता की शक्ति का प्रतीक हैं।

संगीत का भव्य उत्सव होता है

दिसंबर में यहां पारंपरिक नृत्य और संगीत का भव्य उत्सव आयोजित होता है, साथ में अंतरराष्ट्रीय रेत कला महोत्सव भी होता है। जनवरी–फरवरी में चंद्रभागा मेला में श्रद्धालु समुद्र में स्नान और सूर्यदेव की पूजा करते हैं। शाम को मंदिर परिसर में लाइट और साउंड शो भी चलते हैं, जो मंदिर के इतिहास और धार्मिक महत्त्व को जीवंत रूप में पेश करते हैं ।


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