भावनात्मक तनाव वाले कामकाज से डायबिटीज़ का खतरा बढ़ सकता है: अध्ययन

स्वीडन के करोलिंस्का इंस्टिट्यूट के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि ऐसे कार्यस्थलों पर जहां कर्मचारियों को लगातार लोगों से बातचीत करनी पड़ती है और उन्हें पर्याप्त सहयोग नहीं मिलता, वहां मधुमेह की आशंका सबसे अधिक देखी गई।;

By :  DeskNoida
Update: 2025-06-25 19:30 GMT

एक हालिया अध्ययन में सामने आया है कि कार्यस्थल पर भावनात्मक तनाव और आमने-सामने की कहासुनी जैसी स्थितियां टाइप 2 डायबिटीज़ का खतरा बढ़ा सकती हैं। अध्ययन के मुताबिक, ऐसे नौकरी करने वालों में मधुमेह होने का जोखिम 24 फीसदी तक बढ़ सकता है।

स्वीडन के करोलिंस्का इंस्टिट्यूट के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि ऐसे कार्यस्थलों पर जहां कर्मचारियों को लगातार लोगों से बातचीत करनी पड़ती है और उन्हें पर्याप्त सहयोग नहीं मिलता, वहां मधुमेह की आशंका सबसे अधिक देखी गई। महिलाओं में यह खतरा 47 फीसदी तक पाया गया, खासकर तब जब उनके पास सहयोग की कमी रही।

इस विश्लेषण में स्वीडन में 2005 में पंजीकृत 30 लाख लोगों के डेटा को शामिल किया गया। अध्ययन में 30 से 60 वर्ष की उम्र के ऐसे लोगों को लिया गया जिन्हें पहले से डायबिटीज़ नहीं थी और जो इसकी दवा नहीं ले रहे थे।

शोधकर्ताओं ने 20 ऐसे पेशों का अध्ययन किया जहां आमने-सामने संपर्क अधिक होता है—जैसे कि सेवा, स्वास्थ्य, होटल-रेस्टोरेंट और शिक्षा क्षेत्र। तीन तरह की परिस्थितियों को देखा गया: सामान्य संपर्क, तनावपूर्ण परिस्थितियों में भावनात्मक मांगें और टकराव की स्थितियां।

2006 से 2020 के बीच, इन प्रतिभागियों में से दो लाख से अधिक लोगों में टाइप 2 डायबिटीज़ पाई गई। इनमें करीब 60 फीसदी पुरुष थे। पीड़ितों में अधिकतर की उम्र ज़्यादा थी, वे स्वीडन के बाहर पैदा हुए थे, उनकी शिक्षा का स्तर कम था और काम पर नियंत्रण भी सीमित था।

पुरुषों में भावनात्मक तनाव और टकराव का संबंध क्रमशः 20 और 15 फीसदी बढ़े हुए जोखिम से पाया गया, जबकि महिलाओं में ये जोखिम क्रमशः 24 और 20 फीसदी रहा।

शोधकर्ताओं का कहना है कि लंबे समय तक चलने वाला मानसिक तनाव शरीर की एंडोक्राइन प्रणाली को प्रभावित कर सकता है, जिससे 'कॉर्टिसोल' नामक तनाव हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है। इससे इंसुलिन प्रतिरोध भी बढ़ता है, जो डायबिटीज़ की ओर ले जा सकता है।

उन्होंने यह भी कहा कि जब कार्यस्थल पर सामाजिक सहयोग नहीं होता, तो यह समस्या और भी गंभीर हो सकती है। जब कर्मचारियों को सामाजिक या संगठनात्मक अपेक्षाओं के अनुसार अपने भावों को नियंत्रित करना पड़ता है—भले ही वे अंदर से कुछ और महसूस कर रहे हों—तो यह तनाव और अधिक बढ़ सकता है।

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