Navratri Special: भारत के इस मंदिर नें महाकाली के रूप में प्रकट हुई थी मां दुर्गा! जानें मंदिर की कथा
नई दिल्ली। दिल्ली का कालकाजी मंदिर हिंदू देवी काली को समर्पित एक प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है। इसे मनोकामना सिद्ध पीठ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यहां पूजा करने वाले भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। मंदिर का सबसे पुराना हिस्सा 1764 ई. के आसपास मराठों द्वारा बनवाया गया था, और बाद में इसमें कई संशोधन किए गए।
विशेषताएं
- यह मंदिर दक्षिण दिल्ली के कालकाजी इलाके में स्थित है, जिसका नाम इसी मंदिर के नाम पर पड़ा है।
- मंदिर की देवी कालका की मूर्ति को स्वयंभू या स्वयं प्रकट होने वाला माना जाता है।
- नवरात्रि के दौरान यहां भारी भीड़ उमड़ती है, जब भक्त देवी का आशीर्वाद लेने आते हैं।
- मंदिर के पास ही अन्य धार्मिक स्थल भी हैं, जैसे कि लोटस टेंपल और इस्कॉन मंदिर।
रक्तबीज का वध और मां काली का अवतार
सबसे लोकप्रिय कथा के अनुसार, सतयुग में इस क्षेत्र में रहने वाले महापराक्रमी राक्षस रक्तबीज ने देवताओं और ऋषियों को बहुत परेशान किया था। सभी देवताओं ने ब्रह्मा जी से मदद मांगी। ब्रह्मा जी की सलाह पर, देवताओं ने अरावली पर्वत श्रृंखला के सूर्यकूट नामक पर्वत पर भगवती की पूजा की। देवताओं की प्रार्थना से माता कौशिकी प्रकट हुईं और उन्होंने कई राक्षसों का संहार किया। लेकिन रक्तबीज को यह वरदान मिला था कि उसके रक्त की एक भी बूंद धरती पर गिरने पर उसी जैसे कई और राक्षस पैदा हो जाएंगे। रक्तबीज के वध के दौरान, जब उसके रक्त की बूंदें धरती पर गिरीं, तो नए राक्षस पैदा होने लगे।
तब मां कौशिकी की भौंहों से महाकाली का जन्म हुआ, जिन्होंने रक्तबीज के रक्त को धरती पर गिरने से पहले ही चाट लिया और उसका वध कर दिया। राक्षसों का अंत करने के बाद, मां काली का क्रोध शांत नहीं हुआ। तब भगवान शिव ने उन्हें शांत करने के लिए अपने सीने पर लिटा दिया, और मां शिव के सीने पर पैर रखते ही शांत हो गईं। तब से मां काली को उनके शांत रूप में यहां पूजा जाता है।
शक्तिपीठ की कथा
यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, जहां देवी सती के अंग गिरे थे। पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान शिव सती के मृत शरीर को लेकर घूम रहे थे, तो उनके अंग जहां-जहां गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। इस स्थान पर देवी सती के दाहिने पैर का अंगूठा गिरा था, जिसके बाद यह एक दिव्य ऊर्जा का स्रोत बन गया।
महाभारत काल से संबंध
कालकाजी मंदिर का संबंध महाभारत काल से भी माना जाता है। कहा जाता है कि पांडवों ने कुरुक्षेत्र का युद्ध जीतने के बाद यहां देवी काली की पूजा की थी, जिससे उन्हें साहस और विजय का आशीर्वाद मिला था। कुछ मान्यताओं के अनुसार, पांडवों ने यहां पांच मंदिरों का निर्माण करवाया था, और यह मंदिर भी उन्हीं में से एक था।
मंदिर का नाम
मंदिर के नाम के पीछे भी एक कथा है। इस क्षेत्र में रहने वाले महापराक्रमी असुरों को मारने के बाद जब देवी शांत हुईं, तो उनका एक सौम्य रूप यहाँ स्थापित हुआ। इसी कारण इस पीठ को 'मनोकामना सिद्ध पीठ' या 'जयंती पीठ' भी कहा जाता है।