भारत में घटे मगर टले नहीं आतंकवादी हमले, जानें पिछले दस वर्षों में क्या रहीं चुनौतियां और क्या निकला समाधान
डॉ. चेतन आनंद
नई दिल्ली। भारत एक विशाल, विविधतापूर्ण और भू-राजनीतिक रूप से संवेदनशील देश है। इसकी सीमाएं पाकिस्तान, चीन, नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे देशों से मिलती हैं, जिनमें से कुछ क्षेत्रों में दशकों से सुरक्षा चुनौतियां मौजूद हैं। इन परिस्थितियों के कारण भारत को लंबे समय से विभिन्न प्रकार के आतंकवादी संगठनों और उग्रवादी आंदोलनों से जूझना पड़ा है। पिछले दस वर्षों में सुरक्षा एजेंसियों ने अनेक सफलताएं हासिल की हैं, लेकिन खतरे पूरी तरह समाप्त नहीं हुए हैं।
1. भारत में सक्रिय प्रमुख आतंकवादी नेटवर्क
भारत में आतंकवाद मुख्यतः तीन प्रकार की पृष्ठभूमियों से संचालित होता है-
(1) सीमा पार से प्रायोजित इस्लामिक आतंकवाद
(2) वामपंथी उग्रवाद (नक्सलवाद), और
(3) क्षेत्रीय/अलगाववादी उग्रवाद
पाकिस्तान-आधारित आतंकवादी संगठन
भारत के लिए सबसे बड़ा और निरंतर खतरा पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों से आता है। इनमें प्रमुख हैं-लश्कर-ए-तैयबा , जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन। ये संगठन कश्मीर क्षेत्र में सक्रिय रहते हैं और कई बार बड़े हमलों को अंजाम दे चुके हैं। इनकी फंडिंग, प्रशिक्षण और हथियारों की आपूर्ति पाकिस्तान के भीतर मौजूद ढांचों से होती है।
आईएसआईएस और अल-कायदा की शाखाएं
पिछले एक दशक में आईएसआईएस और अल-कायदा जैसे वैश्विक जिहादी संगठनों ने भारत में वैचारिक स्तर पर पैठ बनाने की कोशिश की है। हालांकि इनकी सक्रियता सीमित रही, लेकिन कई मॉड्यूल पकड़े गए और कुछ राज्यों में कट्टरपंथी गतिविधियां उजागर हुईं।
भारतीय मूल के इस्लामिक नेटवर्क
इंडियन मुजाहिद्दीन जैसे संगठनों की गतिविधियां पिछली दशक में तेज थीं, परंतु सुरक्षा एजेंसियों की कार्रवाईयों से इनकी क्षमता बहुत कमजोर पड़ गई है।
वामपंथी उग्रवाद
छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र और बिहार के कुछ हिस्सों में वामपंथी उग्रवाद पिछले 40 वर्षों से चुनौती बना हुआ है। यह आंदोलन भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए लंबे समय तक सबसे बड़ा खतरा माना जाता रहा, हालांकि पिछले पांच-छह वर्षों में इसकी ताकत काफी कम हुई है।
उत्तर-पूर्व के अलगाववादी समूह
उल्फा, एनएससीएन और अन्य समूह वर्षों से सक्रिय रहे हैं। कई संगठन अब शांति वार्ता में हैं, जिससे इस क्षेत्र में हिंसा काफी कम हुई है।
खालिस्तानी समर्थक नेटवर्क
कनाडा, यूरोप और पाकिस्तान से चलने वाली कुछ गतिविधियां पंजाब तथा दिल्ली-एनसीआर के लिए खतरा पैदा करती हैं। ये संगठन मुख्यतः सोशल मीडिया और विदेशों में समर्थकों के सहारे नेटवर्क बनाते हैं।
2. दिल्ली-एनसीआर की आतंकवाद के संदर्भ में स्थिति
दिल्ली-एनसीआर देश की राजधानी होने के कारण हमेशा से संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है। यहां संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, दूतावास, बड़े सरकारी कार्यालय, ऐतिहासिक स्मारक और अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट जैसी महत्वपूर्ण जगहें मौजूद हैं। इसलिए आतंकवादी संगठनों की निगाहें इस क्षेत्र पर बनी रहती हैं।
पिछले वर्षों की प्रमुख चिंताए
सीमा पार से आने वाले मॉड्यूल कई बार दिल्ली-एनसीआर में पकड़े गए। खालिस्तानी समर्थित मॉड्यूल और गैंगस्टर-आतंकी गठजोड़ ने नए प्रकार का खतरा पैदा किया। आईएसआईएस से प्रेरित कुछ छोटे मॉड्यूल भी दिल्ली पुलिस व स्पेशल सेल ने उजागर किए। वर्ष 2025 में लाल क़िला क्षेत्र में हुए बम धमाके ने यह साबित किया कि राजधानी अभी भी शत्रुओं के निशाने पर है। दिल्ली पुलिस, एनआईए, रॉ और आईबी ने पिछले एक दशक में कई योजनाओं को विफल किया है, जिस कारण बड़े आतंकी हमले अपेक्षाकृत कम हुए हैं। परंतु राजधानी की सुरक्षा एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें नए खतरों को पहचानते रहना आवश्यक है।
3. पिछले 10 वर्षों (2015-2025) का परिदृश्य
(1) कश्मीर में आतंकवाद-कश्मीर घाटी पिछले दस वर्षों में सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रहा। 2016-2020 के बीच आतंकवादी गतिविधियां बढ़ीं। 2021 के बाद सुरक्षा बलों ने कई सफल ऑपरेशन किए। बड़ी संख्या में स्थानीय व विदेशी आतंकवादी मारे गए। कई मॉड्यूल पकड़े गए, हथियार बरामद हुए, और पाकिस्तान से चलने वाले नेटवर्क कमजोर पड़े।
(2) नक्सलवाद की स्थिति-2010 के मुकाबले 2024-2025 तक नक्सल हिंसा में लगभग 70 प्रतिशत तक कमी आई है। सैकड़ों उग्रवादी मुठभेड़ों में मारे गए। बड़ी संख्या में आत्मसमर्पण हुए। कई राज्यों में नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या घट चुकी है।
(3) आईएसआईएस और कट्टरपंथ से प्रेरित गिरफ्तारियां-कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना में दस वर्षों में कई मॉड्यूल पकड़े गए। इनकी संख्या कम थी, परंतु यह प्रकार “लोन वुल्फ” शैली के हमलों के कारण खतरनाक माने गए।
(4) खालिस्तानी नेटवर्क और गैंगस्टर गठजोड़-पिछले कुछ वर्षों में यह खतरा तेजी से उभरा है। एनआईए, दिल्ली पुलिस और पंजाब पुलिस ने कई मॉड्यूल पकड़े हैं। सोशल मीडिया और विदेशों से संचालित गतिविधियां इस खतरे का नया स्वरूप हैं।
4. पिछले 10 वर्षों में आतंकियों की मौत और गिरफ्तारियां
जम्मू-कश्मीर में हर वर्ष 100-200 के बीच आतंकवादी मुठभेड़ों में मारे जाते रहे हैं (वर्ष विशेष के अनुसार उतार-चढ़ाव)। नक्सल क्षेत्र में पिछले दस वर्षों में सैकड़ों उग्रवादी ढेर हुए और हज़ारों ने आत्मसमर्पण किया। आईएसआईएस, आईमी अन्य मॉड्यूल की लगभग हर वर्ष 20-40 के बीच गिरफ्तारियाँ दर्ज हुईं। दिल्ली-एनसीआर में अधिकांश मॉड्यूल “गिरफ्तारी” चरण में पकड़े गए, जिससे बड़े हमले रोके जा सके। कुल मिलाकर पिछले दशक में भारत ने आतंकवाद-निरोधक मोर्चे पर बड़ी सफलता पाई है। देश की खुफिया क्षमताएं, निगरानी सिस्टम, पुलिस आधुनिकीकरण और एनआईए जैसी जांच एजेंसियों की दक्षता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
5. वर्तमान चुनौतियां और समाधान
चुनौतियां-सीमा पार से निरंतर प्रायोजित नेटवर्क। साइबर/सोशल मीडिया माध्यम से कट्टरपंथ का प्रसार। गैंगस्टर-आतंकी गठजोड़ का उभरना। ड्रोन, डार्क-वेब और क्रिप्टो का दुरुपयोग। बड़े शहरों में छुपे ‘स्लीपर सेल’।
समाधान और प्रगति-तकनीकी निगरानी, एआई और ड्रोन आधारित सुरक्षा व्यवस्था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग बढ़ा। सुरक्षा बलों का बेहतर समन्वय। युवाओं को कट्टरपंथ से बचाने के लिए सामाजिक-शैक्षणिक कार्यक्रम। यूएपीए एवं एनआईए अधिनियम जैसे क़ानूनों की मजबूती।
भारत ने पिछले दस वर्षों में आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक प्रगति की है। जहां कश्मीर और नक्सल क्षेत्रों में हिंसा में भारी कमी आई है, वहीं नए खतरों जैसे वैश्विक जिहादी विचारधारा, साइबर कट्टरपंथ और गैंगस्टर-समर्थित मॉड्यूल ने सुरक्षा ढांचे को और अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता पैदा की है। दिल्ली-एनसीआर जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र को हमेशा ही उच्च सुरक्षा की आवश्यकता रहेगी, क्योंकि आतंकवादी नेटवर्क प्रतीकात्मक और रणनीतिक लक्ष्यों पर हमला करना चाहते हैं। आतंकवाद की चुनौती पूरी तरह समाप्त नहीं हुई, परंतु भारत की सुरक्षा एजेंसियों, खुफिया ढांचे और लोगों की जागरूकता ने देश को काफी सुरक्षित बनाया है। आने वाले वर्षों में तकनीक और वैश्विक सहयोग इस लड़ाई को और मजबूत बनाएंगे।