सावधान! कोविड के बाद भारत पर मंडरा रहा सबसे बड़ा स्वास्थ्य संकट, वायु प्रदूषण को लेकर विशेषज्ञों की गंभीर चेतावनी

खासकर दिल्ली-NCR में हालात बेहद चिंताजनक बने हुए हैं। सर्दियों की शुरुआत के साथ ही हवा की गुणवत्ता खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है और सांस लेना तक मुश्किल हो गया है।;

Update: 2025-12-26 16:43 GMT

कोविड-19 महामारी के बाद भारत जिस सबसे बड़े स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है, वह अब धीरे-धीरे स्पष्ट होता जा रहा है। उत्तर भारत के अधिकांश हिस्से इन दिनों गंभीर वायु प्रदूषण की चपेट में हैं। खासकर दिल्ली-NCR में हालात बेहद चिंताजनक बने हुए हैं। सर्दियों की शुरुआत के साथ ही हवा की गुणवत्ता खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है और सांस लेना तक मुश्किल हो गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इस दिशा में तुरंत और ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह संकट आने वाले वर्षों में और भी विकराल रूप ले सकता है।

ब्रिटेन में कार्यरत भारतीय मूल के श्वसन रोग विशेषज्ञों ने इस स्थिति को लेकर गंभीर चिंता जाहिर की है। उनका मानना है कि कोविड के बाद वायु प्रदूषण भारत के लिए सबसे बड़ा और सबसे अनदेखा स्वास्थ्य संकट बन चुका है। विशेषज्ञों ने समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा से बातचीत में कहा कि देश में श्वसन रोगों का एक “छिपा हुआ संकट” तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन इसे न तो पूरी तरह पहचाना जा रहा है और न ही इसके समाधान के लिए पर्याप्त स्तर पर काम हो रहा है।

लिवरपूल में कार्यरत सलाहकार श्वसन रोग विशेषज्ञ और भारत की कोविड-19 सलाहकार समिति के पूर्व सदस्य मनीष गौतम ने इस स्थिति को “कड़वी सच्चाई” बताया। उन्होंने कहा कि उत्तर भारत में रहने वाले लाखों लोगों के फेफड़ों को पहले ही गंभीर नुकसान पहुंच चुका है। गौतम के अनुसार, हाल के वर्षों में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए जो कदम उठाए गए हैं, वे पर्याप्त नहीं हैं। वर्षों तक जहरीली हवा में सांस लेने के कारण अब फेफड़ों से जुड़ी स्वास्थ्य आपात स्थिति सामने आ रही है।

चिकित्सकों के आंकड़ों के मुताबिक, दिसंबर के महीने में सिर्फ दिल्ली के अस्पतालों में ही श्वसन संबंधी समस्याओं से पीड़ित मरीजों की संख्या में 20 से 30 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इनमें बड़ी संख्या ऐसे युवाओं की भी थी, जिन्हें पहले कभी इस तरह की परेशानी नहीं हुई थी। विशेषज्ञों का कहना है कि केवल प्रदूषण नियंत्रण उपायों पर निर्भर रहना अब पर्याप्त नहीं है। इसके साथ-साथ बड़े पैमाने पर जांच, समय रहते निदान और इलाज की व्यवस्था भी जरूरी है।

गौतम ने यह भी कहा कि भारत पहले तपेदिक जैसी गंभीर बीमारियों के खिलाफ बड़े स्तर पर सफल स्वास्थ्य अभियान चला चुका है। इसी तरह श्वसन रोगों के लिए भी राष्ट्रीय स्तर पर योजनाबद्ध कार्यक्रम शुरू करने की जरूरत है। उन्होंने नीति निर्धारकों से तेजी से काम करने वाले एक विशेष ‘कार्यदल’ के गठन पर विचार करने की अपील की।

वहीं लंदन के सेंट जॉर्ज यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल से जुड़े मानद हृदय रोग विशेषज्ञ राजय नारायण का कहना है कि वायु प्रदूषण और हृदय, श्वसन व तंत्रिका संबंधी बीमारियों के बीच मजबूत वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद हैं। उनके अनुसार, सिरदर्द, थकान, हल्की खांसी, गले में खराश, आंखों में जलन और बार-बार संक्रमण जैसे लक्षणों को लोग मामूली समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, जबकि ये गंभीर दीर्घकालिक बीमारियों की शुरुआती चेतावनी हो सकते हैं।

विशेषज्ञों ने साफ कहा है कि यदि वायु प्रदूषण की इस समस्या को समय रहते गंभीरता से नहीं लिया गया, तो यह न सिर्फ देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर भारी बोझ डालेगा, बल्कि आर्थिक नुकसान भी कई गुना बढ़ जाएगा। कोविड के बाद भारत के सामने खड़ा यह नया संकट अब चेतावनी नहीं, बल्कि कार्रवाई की मांग कर रहा है।

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