चार दिन का कार्यसप्ताह कर्मचारियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी: अध्ययन
यह अध्ययन प्रतिष्ठित Nature Human Behaviour जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसमें 2,896 कर्मचारियों ने छह महीने तक बिना वेतन कटौती के चार दिन सप्ताह का पालन किया। इस दौरान कार्यस्थलों को इस प्रकार पुनर्गठित किया गया कि उत्पादकता प्रभावित न हो और सहयोग में सुधार हो सके।;
एक नए अंतरराष्ट्रीय शोध में पाया गया है कि सप्ताह में चार दिन काम करने की प्रणाली अपनाने से कर्मचारियों की मानसिक और शारीरिक सेहत में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। यह अध्ययन अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे उच्च आय वाले देशों के 141 संगठनों में किया गया।
बोस्टन कॉलेज (अमेरिका) और यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन (आयरलैंड) के शोधकर्ताओं ने यह पाया कि चार दिन काम करने वाले कर्मचारियों में तनाव, थकान और नींद की समस्या कम पाई गई, जबकि नौकरी से संतुष्टि, मानसिक संतुलन और शारीरिक सेहत में सुधार देखा गया। वहीं जिन 12 संगठनों में यह मॉडल लागू नहीं किया गया, वहां ऐसा कोई सुधार देखने को नहीं मिला।
यह अध्ययन प्रतिष्ठित Nature Human Behaviour जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसमें 2,896 कर्मचारियों ने छह महीने तक बिना वेतन कटौती के चार दिन सप्ताह का पालन किया। इस दौरान कार्यस्थलों को इस प्रकार पुनर्गठित किया गया कि उत्पादकता प्रभावित न हो और सहयोग में सुधार हो सके।
शोधकर्ताओं ने बताया कि इस सकारात्मक बदलाव का मुख्य कारण तीन बातें रहीं — खुद की कार्यक्षमता को लेकर बेहतर दृष्टिकोण, नींद से जुड़ी समस्याओं में कमी, और सामान्य थकान में गिरावट।
शोध में यह भी कहा गया है कि "चार दिन का आय-संरक्षित कार्यसप्ताह कर्मचारियों की भलाई बढ़ाने का एक प्रभावी संगठनात्मक उपाय साबित हो सकता है।"
हाल के वर्षों में दुनिया के कई देश काम और जीवन के बेहतर संतुलन के लिए कम घंटे या कम दिन काम करने जैसी नीतियों पर प्रयोग कर रहे हैं। हालांकि, किसी देश के श्रम कानून, आर्थिक स्थिति और सांस्कृतिक दृष्टिकोण भी इस बदलाव को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कारक होते हैं।
उदाहरणस्वरूप, फ्रांस ने 2000 के दशक में 35 घंटे प्रति सप्ताह के कार्य कानून को कानूनी रूप से लागू किया था। वहीं भूटान जैसे देश अब भी प्रति सप्ताह 50 घंटे से अधिक काम करवाने वाले देशों में शामिल हैं।
शोधकर्ताओं ने लंबे समय तक काम करने से संबंधित विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं जैसे कि मधुमेह, हृदय रोग और पुराने दर्द की स्थिति के बीच संबंध का भी उल्लेख किया। हालांकि, उन्होंने माना कि इस प्रकार के अधिकांश अध्ययन अवलोकन आधारित होते हैं और इनसे स्पष्ट कारण और प्रभाव का निर्धारण करना कठिन होता है।
शोध में यह भी माना गया कि यह पूर्णतः रैंडमाइज़्ड परीक्षण नहीं था, इसलिए इसके निष्कर्षों को व्यापक स्तर पर लागू करने में कुछ सीमाएं हैं। साथ ही, अध्ययन में शामिल अधिकांश संगठन छोटे थे और सभी प्रतिभागी उच्च आय वाले देशों से थे।
फिर भी, यह शोध इस बात को मजबूती देता है कि लंबे कार्य घंटों और कर्मचारियों की भलाई के बीच गहरा संबंध मौजूद है।