Jagdeep Dhanakhar:'संविधान की प्रस्तावना बदल नहीं सकती, पर Emergency में...', उपराष्ट्रपति धनखड़ का बड़ा बयान
प्रस्तावना में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। प्रस्तावना ही वह आधार है जिस पर संविधान विकसित हुआ है।;
नई दिल्ली। आरएसएस नेता दत्तात्रेय होसबोले के संविधान की प्रस्तावना से सेकुलर और समाजवाद शब्द हटाए जाने की मांग करने पर विवाद गहराता जा रहा है। जिसमें विपक्षी दल इसे लेकर RSS और बीजेपी पर हमलावर हैं। इस बीच उपराष्ट्रपति निवास में हुए एक कार्यक्रम के दौरान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 50 साल आपातकाल के पूरे होने पर संविधान और प्रस्तावना को लेकर बात की। उन्होने आपातकाल के दौर को भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला दौर बताया है।
क्या बोले जगदीप धनखड़
जगदीप धनखड़ ने कहा कि "आपातकाल के दौरान, भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला दौर, जब लोग सलाखों के पीछे थे, मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे। उन लोगों के नाम पर - हम लोग - जो गुलाम थे, हम सिर्फ किसके लिए जा रहे हैं? सिर्फ शब्दों का तड़का? इसे शब्दों से परे निंदनीय माना जाना चाहिए। हम अस्तित्वगत चुनौतियों को पंख दे रहे हैं। आपातकाल के दौरान इन शब्दों को जोड़ना संविधान निर्माताओं की मानसिकता के साथ विश्वासघात को दर्शाता है।"
संविधान की प्रस्तावना उसकी आत्मा होती है...
जगदीप धनखड़ कहते हैं, "किसी भी संविधान की प्रस्तावना उसकी आत्मा होती है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना अनूठी है। भारत को छोड़कर, किसी भी अन्य देश के संविधान की प्रस्तावना में कोई बदलाव नहीं हुआ है। प्रस्तावना में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। प्रस्तावना ही वह आधार है जिस पर संविधान विकसित हुआ है। यह संविधान का बीज है। लेकिन भारत के लिए इस प्रस्तावना को 1976 के 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा बदल दिया गया, जिसमें समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता जैसे शब्द जोड़े गए।"
डॉ. अंबेडकर को लेकर क्या बोले उपराष्ट्रपति?
उपराष्ट्रपति ने कहा कि "हमें आत्मचिंतन करना चाहिए डॉ.अंबेडकर ने अत्यंत परिश्रम से यह कार्य किया। उन्होंने अवश्य ही इस पर गहराई से विचार किया होगा। हमारे संविधान निर्माताओं ने प्रस्तावना को सही और उचित समझ कर जोड़ा था. लेकिन इस आत्मा को ऐसे समय बदला गया जब लोग बंधन में थे। भारत के लोग, जो सर्वोच्च शक्ति का स्रोत हैं वे जेलों में थे, न्याय प्रणाली तक पहुंच से वंचित थे। मैं 25 जून 1975 को लागू किए गए 22 महीनों के आपातकाल की बात कर रहा हूं। तो यह कितना बड़ा न्याय का उपहास है! पहले हम उस चीज़ को बदलते हैं जो अपरिवर्तनीय' है जो 'हम भारत के लोग' से उत्पन्न होती है और फिर उसे आपातकाल के दौरान बदल देते हैं. जब हम भारत के लोग पीड़ा में थे हृदय से, आत्मा से वे अंधकार में जी रहे थे।"