Sawan Special: सावन में शिवभक्ति का रंग! भगवान कृष्ण की नगरी के कोतवाल है भोलेनाथ, जानें आखिर कहां विराजमान है भूतेश्वर महादेव
नई दिल्ली। सावन का पावन महीना शुरू होते ही देशभर में भगवान शिव की भक्ति की गूंज सुनाई देने लगती है। शिवालयों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है, लेकिन श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में सावन का नजारा कुछ अलग ही होता है। क्योंकि यहां भगवान भोलेनाथ खुद कोतवाल के रूप में विराजमान हैं। सावन मास के आगमन के साथ ही पूरी नगरी में जहां भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के जयकारे लग रहे हैं, वहीं हर तरफ भोलेनाथ के जयघोष भी गूंज रहे हैं।
श्रीकृष्ण की नगरी के रक्षक है भूतेश्वर महादेव
उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर के भूतेश्वर चौराहे पर स्थित यह मंदिर सिर्फ एक शिवालय नहीं, बल्कि श्रीकृष्ण की नगरी का रक्षक स्थल माना जाता है। माना जाता है कि जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था और उन्होंने कंस का वध किया था। तब उन्होंने मथुरा और बृजवासियों की रक्षा के लिए भगवान शिव को इस नगरी का कोतवाल नियुक्त किया। तभी से भोलेनाथ यहां भूतेश्वर महादेव के रूप में विराजमान हैं।
2000 वर्षों से भी अधिक पुराना है मंदिर
जानकारी केस मुताबिक इस मंदिर को लेकर विभिन्न मान्यताएं प्रचलित हैं। कुछ इतिहासकार और श्रद्धालु इसे लगभग 400-500 वर्ष पुराना मानते हैं, जबकि कई लोगों का दावा है कि यह मंदिर 2000 वर्षों से भी अधिक पुराना है। एक किंवदंती के अनुसार, तारकासुर नामक राक्षस ने यहीं भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी।
मंदिर की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ और उन्होंने कंस का वध किया, तब उन्होंने मथुरा और बृजवासियों की रक्षा के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की। भगवान शिव ने मथुरा की रक्षा करने का वचन दिया और भूतेश्वर महादेव के रूप में वहां विराजमान हो गए। यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने इंद्र के प्रकोप से ब्रजवासियों की रक्षा के लिए वर्षा को रोका था। इस घटना के बाद, भगवान कृष्ण ने भगवान शिव को चक्रेश्वर नाम से गोवर्धन धाम में मानसी गंगा के निकट स्थापित किया और स्वयं उनकी पूजा अर्चना प्रारंभ की। इसलिए, भूतेश्वर महादेव को मथुरा का कोतवाल माना जाता है और भक्तजन शहर की रक्षा के लिए उनकी पूजा करते हैं।
52 शक्तिपीठों में से एक
बता दें कि भूतेश्वर महादेव मंदिर की एक अन्य खास बात यह है कि यह भारत के 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यही नहीं, इस मंदिर के भूमिगत गर्भगृह में पाताल देवी का वास भी है, जहां माना जाता है कि कभी कंस ने भी पूजा अर्चना की थी।
मंदिर में पूजा का विशेष महत्व
सावन के पवित्र महीने में इस मंदिर में विशेष पूजा और रुद्राभिषेक किया जाता है। श्रद्धालु शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, चंदन और दूध चढ़ाकर भगवान से अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने की प्रार्थना करते हैं। साथ ही मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से यहां आकर कुछ मांगते है तो उनकी हर मनोकामना अवश्य पूरी हो जाती है।