दिल्ली में कृत्रिम बारिश के लिए चल रहा तीसरा ट्रायल, जानें क्लाउड सीडिंग यानी कृत्रिम बारिश कराने की प्रक्रिया

Update: 2025-10-28 10:58 GMT

नई दिल्ली। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण से निपटने के लिए क्लाउड सीडिंग का एक और सफल ट्रायल हुआ है। अगले कुछ घंटों में अब बारिश हो सकती है। बता दें कि यह ट्रायल एक सेसना प्लेन के जरिए किया गया। प्लेन मेरठ से दिल्ली के लिए उड़ा था। यह क्लाउड सीडिंग खेकड़ा, बुराड़ी, मयूर विहार और अन्य इलाकों में की गई। लेकिन क्या आप जानते हैं क्लाउड सीडिंग क्या होता है।

आज ही होगा तीसरा ट्रायल

जानकारी के मुताबिक क्लाउड सीडिंग का तीसरा ट्रायल भी आज ही हो रहा है। ट्रायल के कारण 15 मिनट से 4 घंटे के बीच कभी भी बारिश हो सकती है।

क्या है क्लाउड सीडिंग?

क्लाउड सीडिंग का अर्थ कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) कराने की एक वैज्ञानिक तकनीक है, जिसमें बादलों में रासायनिक कणों (जैसे सिल्वर आयोडाइड, नमक) का छिड़काव किया जाता है, जिससे वे वर्षा या बर्फ़ के रूप में नीचे गिर सकें। इसे "बादलों में बारिश के बीज बोना" भी कहते हैं। इस प्रक्रिया का उपयोग सूखे वाले क्षेत्रों में वर्षा बढ़ाने या वायु प्रदूषण कम करने के लिए किया जाता है।

क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया

रासायनिक छिड़काव: बादलों में मौजूद बहुत ठंडे पानी की बूंदों या बर्फ के कणों को घनीभूत करने के लिए सिल्वर आयोडाइड (AgI), नमक (सोडियम क्लोराइड) या ड्राई आइस (ठोस कार्बन डाइऑक्साइड) जैसे पदार्थों को हवाई जहाज या अन्य माध्यमों से बादलों में छोड़ा जाता है।

संघनन नाभिक: ये कण "संघनन नाभिक" के रूप में काम करते हैं, जो बादलों में पानी की बूंदों या बर्फ के क्रिस्टल को जमा होने के लिए एक आधार प्रदान करते हैं।

भारी कण: धीरे-धीरे ये क्रिस्टल बड़े और भारी हो जाते हैं, और जब ये पर्याप्त भारी हो जाते हैं, तो वे बारिश या बर्फबारी के रूप में जमीन पर गिरते हैं।

क्लाउड सीडिंग के उपयोग

सूखा प्रबंधन: उन क्षेत्रों में वर्षा बढ़ाने के लिए जहां सूखा पड़ा हो।

वायु प्रदूषण कम करना: हवा में मौजूद प्रदूषकों को बारिश के साथ नीचे लाकर वायु की गुणवत्ता सुधारना।

बर्फबारी बढ़ाना: इसका उपयोग पहाड़ी और स्की रिसॉर्ट वाले क्षेत्रों में सर्दियों में बर्फबारी बढ़ाने के लिए किया जाता है। इससे प्राकृतिक जल आपूर्ति भी बढ़ जाती है।

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