ट्रंप का 'प्रोजेक्ट फायरवॉल': भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स पर क्यों पड़ेगा सबसे बड़ा असर?
चूंकि H-1B वीजा का सबसे ज्यादा लाभ भारतीयों को मिलता है, इसलिए इस परियोजना का सीधा असर भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स और कंपनियों पर पड़ेगा।;
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 'अमेरिका फर्स्ट' एजेंडे के तहत अमेरिकी लेबर डिपार्टमेंट ने 'प्रोजेक्ट फायरवॉल' की शुरुआत कर दी है। यह पहल मुख्य रूप से H-1B वीजा धारकों और आवेदकों पर केंद्रित है। चूंकि H-1B वीजा का सबसे ज्यादा लाभ भारतीयों को मिलता है, इसलिए इस परियोजना का सीधा असर भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स और कंपनियों पर पड़ेगा।
क्या है प्रोजेक्ट फायरवॉल?
यह अमेरिकी श्रम विभाग की पहल है, जिसका उद्देश्य H-1B वीजा प्रोग्राम के दुरुपयोग को रोकना है।
कंपनियों की जांच होगी कि वे अमेरिकी कर्मचारियों को दरकिनार कर विदेशी कर्मचारियों को तो प्राथमिकता नहीं दे रहीं।
हाई स्किल सेक्टर्स जैसे आईटी, इंजीनियरिंग और प्रोग्रामिंग पर इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा।
क्यों है यह महत्वपूर्ण?
आईटी कंपनियों के लिए यह कदम ज्यादा खर्च, कड़ी जांच और सख्त अनुपालन नियम लेकर आएगा।
अमेरिकी कर्मचारियों के लिए इसे नौकरी सुरक्षा की गारंटी के तौर पर पेश किया जा रहा है।
ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीजा धारकों पर $100,000 सालाना शुल्क भी लगाया है, जिससे कंपनियों के लिए विदेशी प्रतिभाओं को नियुक्त करना महंगा हो जाएगा।
भारतीयों पर असर
H-1B वीजा धारकों में लगभग 71% भारतीय हैं, जबकि चीन दूसरे नंबर पर (11.7%) है।
भारतीय आईटी कंपनियों के लिए यह कदम भर्ती प्रक्रिया को महंगा और जटिल बना देगा।
सिलिकॉन वैली और अमेरिकी आईटी कंपनियों की परियोजनाओं में देरी और टैलेंट की कमी देखने को मिल सकती है।
ट्रंप का संदेश
ट्रंप ने कहा कि यह कदम अमेरिकी कर्मचारियों को प्राथमिकता देने और विदेशी वीजा निर्भरता घटाने के लिए जरूरी है।
उन्होंने साथ ही ट्रंप गोल्ड कार्ड का ऐलान किया, जिसे खरीदने पर विदेशी निवेशकों को विशेष अवसर मिलेंगे।
निगरानी और जांच
अमेरिकी श्रम सचिव लोरी शावेज-डेरेमर व्यक्तिगत रूप से H-1B जांच की शुरुआत प्रमाणित करेंगी।
वीजा नियमों का उल्लंघन करने वाली कंपनियों पर जुर्माना, बकाया वेतन भुगतान और H-1B प्रतिबंध जैसे दंड लगाए जाएंगे।
इस परियोजना में श्रम विभाग के साथ कई अन्य अमेरिकी सरकारी एजेंसियां भी मिलकर काम करेंगी।