डॉ. चेतन आनंद
नई दिल्ली। पानी का सम्मान ही भविष्य की सुरक्षा है। विज्ञान हमें बताता है कि जल के बिना जीवन असंभव है, नैतिकता सिखाती है कि यह सबका अधिकार है और आवश्यकता याद दिलाती है कि इसका सीमित उपयोग ही स्थायित्व की गारंटी है। आज का समय हमसे यह संकल्प मांगता है-हम पानी को केवल प्रयोग नहीं, सम्मान देंगे। “यदि हम जल बचाएंगे, तो भविष्य हमें बचाएगा।” इसलिए, अब आवश्यकता है कि विज्ञान की समझ और नैतिकता की संवेदना से हम जल को नयी दृष्टि से देखें। क्योंकि जब आखिरी बूंद बचेगी, तब ही मानवता बचेगी।
क्या हमने पानी के विज्ञान को समझा
“जल ही जीवन है” यह नारा केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि मानव अस्तित्व की आधारशिला है। आज जब पृथ्वी पर हर तीसरा व्यक्ति पानी के संकट से जूझ रहा है, तब यह प्रश्न पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है कि क्या हमने पानी के विज्ञान को समझा, उसकी नैतिकता को निभाया और उसकी वास्तविक आवश्यकता को जाना?
पानी का विज्ञान, धरती का जीवन-सूत्र-विज्ञान की दृष्टि से पानी दो हाइड्रोजन और एक ऑक्सीजन परमाणु से मिलकर बना रासायनिक यौगिक है। परंतु इसकी उपयोगिता रासायनिक नहीं, जीव वैज्ञानिक है, क्योंकि यही जीवन की धड़कन है।
कुछ वैज्ञानिक तथ्य-पृथ्वी की सतह का लगभग 71 प्रतिशत भाग जल से ढका है, परन्तु मात्र 2.5 प्रतिशत ही मीठा पानी है। मानव शरीर का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा जल से बना है। यह सबसे बड़ा विलायक है, जो जीवों के भीतर रासायनिक प्रक्रियाओं को संभव बनाता है। इसका तापीय गुण पृथ्वी को अत्यधिक गर्म या ठंडा होने से बचाता है। वर्षा, नदियां, झीलें, समुद्र और भूजल सभी मिलकर जलचक्र बनाते हैं। यही चक्र जीवन की निरंतरता का वैज्ञानिक आधार है।
पानी की नैतिकता, मानव का नैतिक दायित्व-पानी केवल उपयोग की वस्तु नहीं, साझी विरासत है। प्राचीन भारतीय परंपरा में इसे “पवित्र तत्व” माना गया। गंगा, यमुना, सरस्वती, सिंधु केवल नदियाँ नहीं, मां कहलाईं। इसका अर्थ था “जिससे जीवन मिले, उसका संरक्षण भी हमारा कर्तव्य है।”
नैतिक दृष्टि से कुछ मूल सिद्धांत
1.जल सबका है, कोई भी व्यक्ति, संस्था या राष्ट्र जल पर पूर्ण अधिकार नहीं रख सकता।
2.समान वितरण का अधिकार, जब शहरों के क्लबों में स्विमिंग पूल भरते हैं और गाँवों में लोग एक बाल्टी पानी को तरसते हैं, तब यह असमानता नैतिक पतन है।
3.प्रदूषण अपराध है, रासायनिक कचरे, नालों और प्लास्टिक से नदियों को दूषित करना न केवल पर्यावरणीय अपराध है, बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी अधर्म है।
4.संरक्षण जिम्मेदारी है, भविष्य की पीढ़ियों के लिए जल बचाना मानव धर्म है। महात्मा गांधी ने कहा था “प्रकृति सभी की आवश्यकता पूरी कर सकती है, पर किसी एक के लालच को नहीं।” यह वाक्य आज जल संकट की सबसे बड़ी चेतावनी बन गया है।
पानी की आवश्यकता, विकास और अस्तित्व की धुरी
पानी की आवश्यकता को तीन स्तरों पर समझा जा सकता है- जैविक, सामाजिक और आर्थिक।
जैविक आवश्यकता-हर व्यक्ति को प्रतिदिन 3-5 लीटर पीने योग्य पानी चाहिए। इसके बिना शरीर में डिहाइड्रेशन, गुर्दे की समस्याएं, और अंततः मृत्यु तक की संभावना होती है।
सामाजिक आवश्यकता-भारत जैसे देश में जल केवल जीवन नहीं, संस्कार है। छठ पूजा, स्नान पर्व, कुंभ और गणेश विसर्जन सबमें जल की पवित्र भूमिका है। गांवों में तालाब, कुएं और नदियां केवल जल स्रोत नहीं, सामाजिक एकता के केंद्र रहे हैं। लेकिन यही जल विवाद का कारण भी बना। जैसे कावेरी जल विवाद या रावी-ब्यास नदी विवाद।
आर्थिक आवश्यकता-कृषि, उद्योग, बिजली, निर्माण, और पर्यटन सभी जल पर निर्भर हैं। भारत में कुल मीठे पानी का लगभग 80 प्रतिशत भाग कृषि में खर्च होता है। एक लीटर दूध उत्पादन में औसतन 1000 लीटर पानी और एक किलो चावल में 3000 लीटर पानी लगता है। बिना पानी के न उद्योग चल सकता है, न खेत, न शहर।
जल संकट, विज्ञान और नैतिकता की हार
संयुक्त राष्ट्र की वॉटर डेवलपमेंट रिपोर्ट (2024) बताती है कि विश्व की 25 प्रतिशत आबादी जल संकटग्रस्त क्षेत्रों में रहती है। भारत का हाल भी चिंताजनक है। दिल्ली, चेन्नई, जयपुर, लखनऊ, और बेंगलुरु अगले दशक में “डे-ज़ीरो सिटी” बन सकते हैं। भूजल स्तर हर वर्ष 0.3 मीटर की दर से घट रहा है। नदियां रासायनिक कचरे और सीवेज से भरी हैं। गंगा और यमुना में 70 प्रतिशत तक प्रदूषण स्तर मानक से ऊपर है।
मुख्य कारण
भूजल का अत्यधिक दोहन
वर्षा जल संचयन की उपेक्षा
औद्योगिक प्रदूषण
शहरीकरण और कंक्रीटीकरण
जल नीति की अनदेखी
यह केवल वैज्ञानिक विफलता नहीं, नैतिक पतन भी है। क्योंकि हमने धरती को उपभोग की वस्तु मान लिया, संरक्षण की नहीं।
समाधान, विज्ञान और संवेदना का संगम
जल संकट का समाधान तभी संभव है जब तकनीकी उपायों के साथ नैतिक दृष्टिकोण भी जोड़ा जाए।
वैज्ञानिक उपाय, वर्षा जल संचयनः हर भवन में अनिवार्य व्यवस्था। सूक्ष्म सिंचाई, जल उपयोग में 40 प्रतिशत तक बचत।
रीसाइक्लिंग और पुनः उपयोग, शहरी क्षेत्रों में गंदे पानी का शोधन।
भूजल पुनर्भरण तकनीक, बोरवेल और रिचार्ज वेल का उपयोग।
तालाब और झील पुनर्जीवन, पुराने जल स्रोतों का पुनर्निर्माण।
नैतिक उपाय
दैनिक जीवन में जल बचत, दांत ब्रश करते समय या कपड़े धोते समय नल खुला न छोड़ना।
बच्चों को “जल संस्कृति” सिखाना, शिक्षा में जल अध्याय को व्यवहारिक बनाना।
धार्मिक आयोजनों में नदियों की रक्षा का संकल्प।
समाज में जल-समानता की भावना विकसित करना, गांवों को प्राथमिकता देना।
भारत सरकार की ‘जल जीवन मिशन’, ‘नमामि गंगे’ और ‘अटल भूजल योजना’ जैसी परियोजनाएँ तभी सफल होंगी जब प्रत्येक नागरिक “पानी का प्रहरी” बने।