दादी से पोता बिछुड़ गया रे...Bombay high court ने भावनात्मक रिश्ते के आधार पर पोते की कस्टडी दादी को नहीं दी, जानें पूरा मामला

जस्टिस रवींद्र घुगे और जस्टिस गौतम अंखड की पीठ ने दादी और पोते के भावनात्मक रिश्ते को नजरअंदाज करते हुए फैसला लिया है।;

By :  Aryan
Update: 2025-09-05 11:05 GMT

नई दिल्ली। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने एक दादी से पांच साल के पोते की कस्टडी लेकर उसके माता-पिता को सौंप दी है। न्यायालय का कहना है कि बच्चे के साथ दादी का भावनात्मक रिश्ता हो सकता है, लेकिन उन्हें बच्चे की कस्टडी का अधिकार नहीं दिया जा सकता है। अदालत ने दादी को दो हफ्ते के भीतर बच्चे की कस्टडी बच्चे के माता-पिता को सौंपने का आदेश दिया। इस पर बच्चे की दादी ने याचिका का विरोध किया है और कहा कि वह जन्म से ही बच्चे की देखभाल कर रही हैं एवं पोते के साथ उनके भावनात्मक रिश्ते जुड़े हैं।

पीठ ने भावनात्मक रिश्ते को किया नजरअंदाज

जस्टिस रवींद्र घुगे और जस्टिस गौतम अंखड की पीठ ने दादी और पोते के भावनात्मक रिश्ते को नजरअंदाज करते हुए फैसला लिया है। उच्च न्यायालय के मुताबिक, इस तरह के केवल लगाव से बच्चे के जैविक माता-पिता की तुलना में कस्टडी का अधिकार नहीं देता है। अदालत ने साफ कहा कि बच्चे की कस्टडी जैविक माता-पिता से तभी छीना जा सकता है जब यह साबित हो जाए कि उन्हें कस्टडी देना बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है।

दरअसल ये मामला एक बच्चे की कस्टडी का है, जिसमें वह बचपन से ही अपनी दादी के पास रह रहा था। बच्चे का एक जुड़वां भाई भी है, जो सेरेब्रल पल्सी बीमारी से ग्रसित है। माता-पिता ने सेरेब्रल पल्सी से पीड़ित बच्चे की देखभाल करने के लिए अपने दूसरे बेटे को दादी के पास छोड़ा था। हालांकि जब संपत्ति के लिए विवाद होने लगा, तो बच्चे के पिता ने अपनी 74 साल की बूढ़ी मां से बच्चे की कस्टडी मांगी, लेकिन मां ने इनकार कर दिया। तब बच्चे के पिता ने उच्च न्यायालय में अपील की थी।

पीठ ने कहा- दादी को पोते की कस्टडी का अधिकार नहीं

पीठ ने कहा कि बच्चे के माता-पिता के बीच कोई वैवाहिक विवाद नहीं है, इस तरह का कोई सबूत भी नहीं है, जिससे यह पता चल सके कि वे लोग बच्चे की देखभाल करने में असमर्थ हैं। पीठ ने आगे कहा कि बच्चे को केवल माता-पिता एवं दादी के बीच विवाद के वजह से उसके माता-पिता से दूर नहीं किया जा सकता। अदालत के मुताबिक दादी को अपने पोते की कस्टडी में रखने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है, वो भी तब जब वह 74 साल की खुद हों, उन्हें तो खुद ही देखभाल की जरूरत है।


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