SHIVA: आखिर भगवान शिव ने हलाहल विष क्यों नहीं निगला था? जानें क्या है इसके पीछे का रहस्य
नई दिल्ली। इस बात को हर कोई जानता है कि समुद्र मंथन के दौरान अत्यंत घातक हलाहल विष निकला था, जिसे शिव ने पीकर देवताओं और असुरों की रक्षा की थी। लेकिन बहुत से लोगों को यह बात पता नहीं होगी कि उन्होंने विष को पिया जरूर था, लेकिन उसे पूरा निगला नहीं था। बल्कि, उसे अपने कंठ में धारण कर लिया था। जिस कारण उनका गला गहरे नीले रंग का हो गया, और उनका नाम नीलकंठ पड़ा। लेकिन अब सवाल ये उठता है कि भगवान शिव ने इसे क्यों नहीं निगला? हलाहल विष जिसमें पूरी की पूरी आकाशगंगा को जलाने की शक्ति थी, शिव ने उसे गले में क्यों धारण किया?
कारण
सृष्टि की रक्षा- समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष में संपूर्ण सृष्टि को नष्ट करने की क्षमता थी। किसी भी जीव या देवता में इसे ग्रहण करने की क्षमता नहीं थी, इसलिए शिवजी ने यह जोखिम लिया।
ब्रह्मांड के नियमों की रक्षा- विष का शरीर में जाना ब्रह्मांड के प्राकृतिक नियमों को बाधित कर सकता था। शिवजी ने विष को कंठ में रोककर ब्रह्मांड की व्यवस्था को बनाए रखा।
त्याग और करुणा- शिवजी ने यह विष पूरी सृष्टि के कल्याण के लिए अपने ऊपर ले लिया। उन्होंने स्वयं को कष्ट में डाला और अपना सर्वस्व संसार के लिए समर्पित कर दिया।
पार्श्व कथा
जब समुद्र मंथन से हलाहल विष निकला, तो सभी प्राणी और देवता उससे पीड़ित होने लगे। तब देवताओं ने शिवजी से विनती की, क्योंकि वे ही एकमात्र ऐसे थे जो विष का प्रभाव झेल सकते थे। शिवजी ने विष पी लिया, लेकिन विष के अत्यधिक घातक प्रभाव के कारण माता पार्वती ने चिंतावश उनके गले को दबा दिया। विष गले में ही रुक गया, जिससे उनके गले का रंग नीला हो गया, और उन्हें 'नीलकंठ' के नाम से जाना जाने लगा।
दार्शनिक महत्व
यह घटना सिखाती है कि सच्ची शक्ति अंधकार से बचने में नहीं, बल्कि उसका सामना करने और उसे नियंत्रित करने में है। यह वैराग्य का भी प्रतीक है, जहाँ व्यक्ति संसार की सभी नकारात्मकताओं को अपने अंदर समाहित कर लेता है, लेकिन उससे प्रभावित नहीं होता।
भगवान शिव मे क्यों नहीं निगला जहर
जानकारी के मुताबिक भगवान शिव ने विष को अपने कंठ में रख लिया लेकिन निगला नहीं, ऐसा इसलिए क्योंकि भगवान शिव के पेट में समस्त लोक समाहित हैं, जो हलाहल विष को निगलने पर नष्ट हो जाती। देवी पार्वती ने उनके कंठ में विष रोक दिया, जिससे उनका गला नीला पड़ गया और वे 'नीलकंठ' कहलाए, और इस तरह उन्होंने सृष्टि को विनाश से बचाया।